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आरती विराट विश्वकर्मा भगवान की
ओ3म् जय विश्वकर्मा प्रभु जय विश्वकर्मा । शरण तुम्हारी आये हैं, रक्षक श्रुति धर्मा ।
उमा भवानी शंकर भोले, शरण तुम्हारी आये । कुंज बिहारी कृष्ण योगी, दर्शन करने धाये ।1।
सृष्टि धर्ता पालन कर्ता, ज्ञान विकास किया । धनुष बना छिन माहिं तुमने, शिवाजी हाथ दिया ।2। आठ व्दीप नौ खण्ड स्वामी, चौदह भुवन बनायें । पंचानन करतार जगत के, देख सन्त हर्षाये ।3। शेष शारदा नारद आदि देवन की करी सहाई । दुर्गा इन्द्र सीया राम ने निज मुख गाथा गाई ।4।
ब्रह्म विष्णु विश्वकर्मा तूं शक्ति रुपा । जगहितकारी सकंट हारी , तुम जग के भूपा ।5।
ज्ञान विज्ञान निधि दाता त्वष्टा भुवन पति । अवतार धार के स्वामी तुमने जग में कियो गति । 6। मनु मय त्वष्टा पाँच तनय, ज्ञान शिल्प दाता । शिल्प विधा का आदि युग में, तुम सम को ज्ञाता ।7। मन भावन पावन रुप स्वामी ऋषियों ने जाना । पीत वसन तन सोहे स्वामी, मुक्ति पद बाना ।8। विश्वकर्मा परम गुरु की जो कोई आरती गावै । विश्वप्रताप सन्ताप मिटै, घर सम्पत आवै ।9।
आरती विश्वकर्मा हरि की
ओ3म् जय विश्वकर्मा हरे जय विश्वकर्मा हरे । दीना नाथ शरण गत वत्सलभव उध्दार करे ।1।
भक्त जनों के समय समय पर दुख संकट हर्ता । विश्वरुप जगत के स्वामी तुम आदि कर्ता ।2।
ब्रह्म वशं मे अवतार धरो, निज इच्छा कर स्वामी । प्रभात पिता महतारी भूवना योग सुता नामी ।3। शिवो मनुमय त्वष्टा शिल्पी दैवज सुख दाता । शिल्प कला मे पांच तनय, भये ब्रह्म ज्ञाता ।4।
नारद इन्द्रशेष शारदा तव चरणन के तेरे । अग्नि वायु आदित्य अंगिरा, गावें गुण तेरे ।5।
देव मुनि जन ऋषि महात्मा चरण शरण आये । राम सीया और उमा भवानी कर दर्शन हर्षाये ।6। ब्रह्मा विष्णु शंकर स्वमी, करते नित्य सेवा । जगत प्राणी दर्श करन हित, आस करें देवा ।7।
हेली नाम विप्र ने मन से तुम्हारा गुण गाया । मिला षिल्प वरदान विप्र को, भक्ति फल पाया ।8। अमृत घट की रक्षा कीन्ही, सुर भय हीन भये । महा यज्ञ हेतु इन्द्र के घर, बन के गुरु गये ।9।
पीत वसन कर चक्र सोहे. महा वज्र धारी । वेद ज्ञान की बहे सरिता, सब विध सुखकारी ।10।
हम अज्ञान भक्त तेरे तुम सच्चे हितकारी । करो कामना सब की पूर्ण, दर पर खडे भिकारी ।11। विश्वकर्मा सत्गुरु हमारे, कष्ट हरो तन का । विश्वप्रताप शरण सुख राशि दुख विनेश मन का ।12।
आरती विश्वकर्मा अवतार की
ओ3म् जय पंचानन स्वामी प्रभु पंचानन स्वामी । अजर अमर अविनाशी, नमो अन्तर्यामी । चतुरानन संग सात ऋषि, शरण आपकी आये । अभय दान दे ऋषियन को, सार कष्ट मिटाये ।1। निगम गम पथ दाता हमें शरण पडे तेरी । विषय विकार मिटाओ सारे, मत लाओ देरी ।2। कुण्डल कर्ण गले मे माला इस वाहन सोहे । जति सति सन्यासी जग के, देख ही मोहे ।3। श्रेष्ठ कमण्डल मुकमट शीश पर तुम त्रिशूल धारी । भाल विशा सुलोचन देखत सुख पावँ नरनारी ।4। देख देख कर रुप मुनिजन, मन ही मन रीझै । अग्नि वायु आदित्य अंगिरा, आनन्द रस पीजै ।5। ऋषि अंगिरा कियो धारे तपस्या, शान्ति नही पाई । चरण कमल का दियो आसय, तब सब बन आई ।6। भक्त की जय कार तुम्हारी विज्ञान शिल्प दाता । जिस पर हो तेरी दया दृष्टि भव सागर तर जाता ।7। ऋषि सिर्फ ज्ञान विधायक जो शरण तुम्हारी आये । विश्वप्रताप दुख रोग मिटे, सुख सम्पत पावे ।8।
आरती पंच मुखी विश्वकर्मा की
ओ3म् जय पंचानन देवा , प्रभु जय पंचानन देवा ।
ब्रह्मा विष्णु शंकर आदि करते नित्य सेवा ।1।
भव मय त्राता जगत विधाता, मुक्ति फल दाता ।
स्वर्ण सिहासन मुकुट शीश चहूँ, सबके मन भाता ।2।
प्रभात पिता भवना (माता) विश्वकर्मा स्वामी ।
विज्ञान शिल्प पति जग मांहि, आयो अन्तर्यामी ।3।
त्रिशुल धनु शंकर को दीन्हा, विश्वकर्मा भवकर्ता ।
विष्णु महल रचायो तुमने, कृपा करो भर्ता ।4।
भान शशि नक्षत्र सारे, तुम से ज्योति पावें ।
दुर्गा इन्र्द देव मुनि जन, मन देखत हर्षावें ।5।
श्रेष्ठ कमण्डल कर चक्तपाणी तुम से त्रिशुल धारी ।
नाम तुम्हारा सयाराम और भजते कुँज बिहरी ।6।
नारद आदि शेष शारदा, नुत्य गावत गुण तेरे ।
अमृत घट की रक्षा कीन्ही, जब देवों ने टेरे ।7।
सिन्धु सेत बनाय राम की पल में करी सहाई ।
सप्त ऋषि दुख मोचन कीन्हीं, तब शान्ति पाई ।8।
(तब) सुर नर किन्नर देव मुनि, गाथा नित्य गाते ।
परम पवित्र नाम सुमर नर, सुख सम्पति पाते ।9।
पीत वसन हंस वाहन स्वानी, सबके मन भावे ।
सो प्राणी धन भाग पिता, चरण शरण जो आवे ।10।
पंचानन विश्वकर्मा की जो कोई आरती गावे ।
निश्वप्रताप, दुख छीजें सारा सुख सम्पत आवे ।11।
श्री विश्वकर्मा भगवान के 108 नाम ऊँ विश्वकर्मणे नमः
ऊँ विश्वात्मने नमः
ऊँ विश्वस्माय नमः
ऊँ विश्वधाराय नमः
ऊँ विशवधर्माय नमः
ऊँ विरजे नमः
ऊँ विश्वेक्ष्वराय नमः
ऊँ विष्णवे नमः
ऊँ विश्वधराय नमः
ऊँ विश्वकराय नमः
ऊँ वास्तोष्पतये नमः
ऊँ विश्वभंराय नमः
ऊँ वर्मिणे नमः
ऊँ वरदाय नमः
ऊँ विश्वेशाधिपतये नमः
ऊँ वितलाय नमः
ऊँ विशभुंजाय नमः
ऊँ विश्वव्यापिने नमः
ऊँ देवाय नमः
ऊँ धार्मिणे नमः
ऊँ धीराय नमः
ऊँ धराय नमः
ऊँ परात्मने नमः
ऊँ पुरुषाय नमः
ऊँ धर्मात्मने नमः
ऊँ श्वेतांगाय नमः
ऊँ श्वेतवस्त्राय नमः
ऊँ हंसवाहनाय नमः
ऊँ त्रिगुणात्मने नमः
ऊँ सत्यात्मने नमः
ऊँ गुणवल्लभाय नमः
ऊँ भूकल्पाय नमः
ऊँ भूलेंकाय नमः
ऊँ भुवलेकाय नमः
ऊँ चतुर्भुजय नमः
ऊँ विश्वरुपाय नमः
ऊँ विश्वव्यापक नमः
ऊँ अनन्ताय नमः
ऊँ अन्ताय नमः
ऊँ आह्माने नमः
ऊँ अतलाय नमः
ऊँ आघ्रात्मने नमः
ऊँ अनन्तमुखाय नमः
ऊँ अनन्तभूजाय नमः
ऊँ अनन्तयक्षुय नमः
ऊँ अनन्तकल्पाय नमः
ऊँ अनन्तशक्तिभूते नमः
ऊँ अतिसूक्ष्माय नमः
ऊँ त्रिनेत्राय नमः
ऊँ कंबीघराय नमः
ऊँ ज्ञानमुद्राय नमः
ऊँ सूत्रात्मने नमः
ऊँ सूत्रधराय नमः
ऊँ महलोकाय नमः
ऊँ जनलोकाय नमः
ऊँ तषोलोकाय नमः
ऊँ सत्यकोकाय नमः
ऊँ सुतलाय नमः
ऊँ सलातलाय नमः
ऊँ महातलाय नमः
ऊँ रसातलाय नमः
ऊँ पातालाय नमः
ऊँ मनुषपिणे नमः
ऊँ त्वष्टे नमः
ऊँ देवज्ञाय नमः
ऊँ पूर्णप्रभाय नमः
ऊँ ह्रदयवासिने नमः
ऊँ दुष्टदमनाथ नमः
ऊँ देवधराय नमः
ऊँ स्थिर कराय नमः
ऊँ वासपात्रे नमः
ऊँ पूर्णानंदाय नमः
ऊँ सानन्दाय नमः
ऊँ सर्वेश्वरांय नमः
ऊँ परमेश्वराय नमः
ऊँ तेजात्मने नमः
ऊँ परमात्मने नमः
ऊँ कृतिपतये नमः
ऊँ बृहद् स्मणय नमः
ऊँ ब्रहमांडाय नमः
ऊँ भुवनपतये नमः
ऊँ त्रिभुवनाथ नमः
ऊँ सतातनाथ नमः
ऊँ सर्वादये नमः
ऊँ कर्षापाय नमः
ऊँ हर्षाय नमः
ऊँ सुखकत्रे नमः
ऊँ दुखहर्त्रे नमः
ऊँ निर्विकल्पाय नमः
ऊँ निर्विधाय नमः
ऊँ निस्माय नमः
ऊँ निराधाराय नमः
ऊँ निकाकाराय नमः
ऊँ महदुर्लभाय नमः
ऊँ निमोहाय नमः
ऊँ शांतिमुर्तय नमः
ऊँ शांतिदात्रे नमः
ऊँ मोक्षदात्रे नमः
ऊँ स्थवीराय नमः
ऊँ सूक्ष्माय नमः
ऊँ निर्मोहय नमः
ऊँ धराधराय नमः
ऊँ स्थूतिस्माय नमः
ऊँ विश्वरक्षकाय नमः
ऊँ दुर्लभाय नमः
ऊँ स्वर्गलोकाय नमः
ऊँ पंचवकत्राय नमः
ऊँ विश्वलल्लभाय नमः
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प्राचीन ग्रंथो उपनिषद एवं पुराण आदि का अवलोकन करें तो पायेगें कि आदि काल से ही विश्वकर्मा शिल्पी अपने विशिष्ट ज्ञान एवं विज्ञान के कारण ही न मात्र मानवों अपितु देवगणों द्वारा भी पूजित और वंदित है । भगवान विश्वकर्मा के आविष्कार एवं निर्माण कोर्यों के सन्दर्भ में इन्द्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी, पाण्डवपुरी, सुदामापुरी, शिवमण्डलपुरी आदि का निर्माण इनके द्वारा किया गया है । पुष्पक विमान का निर्माण तथा सभी देवों के भवन और उनके दैनिक उपयोगी होनेवाले वस्तुएं भी इनके द्वारा ही बनाया गया है । कर्ण का कुण्डल, विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र, शंकर भगवान का त्रिशुल और यमराज का कालदण्ड इत्यादि वस्तुओं का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ही किया है । ये "शिल्पशास्त्र" के आविष्कर्ता हैं। पुराणानुसार यह प्रभास वसु के पुत्र हैं। "महाभारत" में इन्हें लावण्यमयी के गर्भ से जन्मा बताया है। विश्वकर्मा रचना के पति हैं। देवताओं के विमान भी विश्वकर्मा बनाते हैं। इन्हें अमर भी कहते हैं। "रामायण" के अनुसार विश्वकर्मा ने राक्षसों के लिए लंका की सृष्टि की। सूर्य की पत्नी संज्ञा इन्हीं की पुत्री थी। सूर्य के ताप को संज्ञा सहन नहीं कर सकी, तब विश्वकर्मा ने सूर्य तेज का आठवां अंश काट उससे चक्र, वज्र आदि शस्त्र बनाकर देवताओं को प्रदान किए ! विष्णुपुराण के पहले अंश में विश्वकर्मा को देवताओं का वर्धकी या देव-बढ़ई कहा गया है तथा शिल्पावतार के रूप में सम्मान योग्य बताया गया है। यही मान्यता अनेक पुराणों में आई है, जबकि शिल्प के ग्रंथों में वह सृष्टिकर्ता भी कहे गए हैं। स्कंदपुराण में उन्हें देवायतनों का सृष्टा कहा गया है। कहा जाता है कि वह शिल्प के इतने ज्ञाता थे कि जल पर चल सकने योग्य खड़ाऊ तैयार करने में समर्थ थे।
विश्व के सबसे पहले तकनीकी ग्रंथ विश्वकर्मीय ग्रंथ ही माने गए हैं। विश्वकर्मीयम ग्रंथ इनमें बहुत प्राचीन माना गया है, जिसमें न केवल वास्तुविद्या, बल्कि रथादि वाहन व रत्नों पर विमर्श है। विश्वकर्माप्रकाश, जिसे वास्तुतंत्र भी कहा गया है, विश्वकर्मा के मतों का जीवंत ग्रंथ है। इसमें मानव और देववास्तु विद्या को गणित के कई सूत्रों के साथ बताया गया है, ये सब प्रामाणिक और प्रासंगिक हैं। मेवाड़ में लिखे गए अपराजितपृच्छा में अपराजित के प्रश्नों पर विश्वकर्मा द्वारा दिए उत्तर लगभग साढ़े सात हज़ार श्लोकों में दिए गए हैं। संयोग से यह ग्रंथ 239 सूत्रों तक ही मिल पाया है।
शिल्प संकायो, कारखानो, उधोगों मॆ भगवान विश्वकर्मा की महत्ता को मानते हुए प्रत्येक वर्ग 17 सितम्बर को श्वम दिवस के रुप मे मनाता है। यह उत्पादन-वृदि ओर राष्टीय समृध्दि के लिए एक संकल्प दिवस है। प्रतिवर्ष 17 सितम्बर विशवकर्मा-पुजा के रुप मे सरकारी व गैर सरकारी ईजीनियरिग संस्थानो मे बडे ही हषौलास से सम्पन्न होता हे। लोग भ्रम वश इस पर्व को विश्वकर्मा जयंति मानते हैं जबकि विश्वकर्मा जयंती हिंदी तिथि के अनुसार माघ सुदी त्रयोदशी को होती है ।
आरती विराट विश्वकर्मा भगवान की
ओ3म् जय विश्वकर्मा प्रभु जय विश्वकर्मा । शरण तुम्हारी आये हैं, रक्षक श्रुति धर्मा ।
उमा भवानी शंकर भोले, शरण तुम्हारी आये । कुंज बिहारी कृष्ण योगी, दर्शन करने धाये ।1।
सृष्टि धर्ता पालन कर्ता, ज्ञान विकास किया । धनुष बना छिन माहिं तुमने, शिवाजी हाथ दिया ।2। आठ व्दीप नौ खण्ड स्वामी, चौदह भुवन बनायें । पंचानन करतार जगत के, देख सन्त हर्षाये ।3। शेष शारदा नारद आदि देवन की करी सहाई । दुर्गा इन्द्र सीया राम ने निज मुख गाथा गाई ।4।
ब्रह्म विष्णु विश्वकर्मा तूं शक्ति रुपा । जगहितकारी सकंट हारी , तुम जग के भूपा ।5।
ज्ञान विज्ञान निधि दाता त्वष्टा भुवन पति । अवतार धार के स्वामी तुमने जग में कियो गति । 6। मनु मय त्वष्टा पाँच तनय, ज्ञान शिल्प दाता । शिल्प विधा का आदि युग में, तुम सम को ज्ञाता ।7। मन भावन पावन रुप स्वामी ऋषियों ने जाना । पीत वसन तन सोहे स्वामी, मुक्ति पद बाना ।8। विश्वकर्मा परम गुरु की जो कोई आरती गावै । विश्वप्रताप सन्ताप मिटै, घर सम्पत आवै ।9।
आरती विश्वकर्मा हरि की
ओ3म् जय विश्वकर्मा हरे जय विश्वकर्मा हरे । दीना नाथ शरण गत वत्सलभव उध्दार करे ।1।
भक्त जनों के समय समय पर दुख संकट हर्ता । विश्वरुप जगत के स्वामी तुम आदि कर्ता ।2।
ब्रह्म वशं मे अवतार धरो, निज इच्छा कर स्वामी । प्रभात पिता महतारी भूवना योग सुता नामी ।3। शिवो मनुमय त्वष्टा शिल्पी दैवज सुख दाता । शिल्प कला मे पांच तनय, भये ब्रह्म ज्ञाता ।4।
नारद इन्द्रशेष शारदा तव चरणन के तेरे । अग्नि वायु आदित्य अंगिरा, गावें गुण तेरे ।5।
देव मुनि जन ऋषि महात्मा चरण शरण आये । राम सीया और उमा भवानी कर दर्शन हर्षाये ।6। ब्रह्मा विष्णु शंकर स्वमी, करते नित्य सेवा । जगत प्राणी दर्श करन हित, आस करें देवा ।7।
हेली नाम विप्र ने मन से तुम्हारा गुण गाया । मिला षिल्प वरदान विप्र को, भक्ति फल पाया ।8। अमृत घट की रक्षा कीन्ही, सुर भय हीन भये । महा यज्ञ हेतु इन्द्र के घर, बन के गुरु गये ।9।
पीत वसन कर चक्र सोहे. महा वज्र धारी । वेद ज्ञान की बहे सरिता, सब विध सुखकारी ।10।
हम अज्ञान भक्त तेरे तुम सच्चे हितकारी । करो कामना सब की पूर्ण, दर पर खडे भिकारी ।11। विश्वकर्मा सत्गुरु हमारे, कष्ट हरो तन का । विश्वप्रताप शरण सुख राशि दुख विनेश मन का ।12।
आरती विश्वकर्मा अवतार की
ओ3म् जय पंचानन स्वामी प्रभु पंचानन स्वामी । अजर अमर अविनाशी, नमो अन्तर्यामी । चतुरानन संग सात ऋषि, शरण आपकी आये । अभय दान दे ऋषियन को, सार कष्ट मिटाये ।1। निगम गम पथ दाता हमें शरण पडे तेरी । विषय विकार मिटाओ सारे, मत लाओ देरी ।2। कुण्डल कर्ण गले मे माला इस वाहन सोहे । जति सति सन्यासी जग के, देख ही मोहे ।3। श्रेष्ठ कमण्डल मुकमट शीश पर तुम त्रिशूल धारी । भाल विशा सुलोचन देखत सुख पावँ नरनारी ।4। देख देख कर रुप मुनिजन, मन ही मन रीझै । अग्नि वायु आदित्य अंगिरा, आनन्द रस पीजै ।5। ऋषि अंगिरा कियो धारे तपस्या, शान्ति नही पाई । चरण कमल का दियो आसय, तब सब बन आई ।6। भक्त की जय कार तुम्हारी विज्ञान शिल्प दाता । जिस पर हो तेरी दया दृष्टि भव सागर तर जाता ।7। ऋषि सिर्फ ज्ञान विधायक जो शरण तुम्हारी आये । विश्वप्रताप दुख रोग मिटे, सुख सम्पत पावे ।8।
आरती पंच मुखी विश्वकर्मा की
ओ3म् जय पंचानन देवा , प्रभु जय पंचानन देवा ।
ब्रह्मा विष्णु शंकर आदि करते नित्य सेवा ।1।
भव मय त्राता जगत विधाता, मुक्ति फल दाता ।
स्वर्ण सिहासन मुकुट शीश चहूँ, सबके मन भाता ।2।
प्रभात पिता भवना (माता) विश्वकर्मा स्वामी ।
विज्ञान शिल्प पति जग मांहि, आयो अन्तर्यामी ।3।
त्रिशुल धनु शंकर को दीन्हा, विश्वकर्मा भवकर्ता ।
विष्णु महल रचायो तुमने, कृपा करो भर्ता ।4।
भान शशि नक्षत्र सारे, तुम से ज्योति पावें ।
दुर्गा इन्र्द देव मुनि जन, मन देखत हर्षावें ।5।
श्रेष्ठ कमण्डल कर चक्तपाणी तुम से त्रिशुल धारी ।
नाम तुम्हारा सयाराम और भजते कुँज बिहरी ।6।
नारद आदि शेष शारदा, नुत्य गावत गुण तेरे ।
अमृत घट की रक्षा कीन्ही, जब देवों ने टेरे ।7।
सिन्धु सेत बनाय राम की पल में करी सहाई ।
सप्त ऋषि दुख मोचन कीन्हीं, तब शान्ति पाई ।8।
(तब) सुर नर किन्नर देव मुनि, गाथा नित्य गाते ।
परम पवित्र नाम सुमर नर, सुख सम्पति पाते ।9।
पीत वसन हंस वाहन स्वानी, सबके मन भावे ।
सो प्राणी धन भाग पिता, चरण शरण जो आवे ।10।
पंचानन विश्वकर्मा की जो कोई आरती गावे ।
निश्वप्रताप, दुख छीजें सारा सुख सम्पत आवे ।11।
श्री विश्वकर्मा भगवान के 108 नाम ऊँ विश्वकर्मणे नमः
ऊँ विश्वात्मने नमः
ऊँ विश्वस्माय नमः
ऊँ विश्वधाराय नमः
ऊँ विशवधर्माय नमः
ऊँ विरजे नमः
ऊँ विश्वेक्ष्वराय नमः
ऊँ विष्णवे नमः
ऊँ विश्वधराय नमः
ऊँ विश्वकराय नमः
ऊँ वास्तोष्पतये नमः
ऊँ विश्वभंराय नमः
ऊँ वर्मिणे नमः
ऊँ वरदाय नमः
ऊँ विश्वेशाधिपतये नमः
ऊँ वितलाय नमः
ऊँ विशभुंजाय नमः
ऊँ विश्वव्यापिने नमः
ऊँ देवाय नमः
ऊँ धार्मिणे नमः
ऊँ धीराय नमः
ऊँ धराय नमः
ऊँ परात्मने नमः
ऊँ पुरुषाय नमः
ऊँ धर्मात्मने नमः
ऊँ श्वेतांगाय नमः
ऊँ श्वेतवस्त्राय नमः
ऊँ हंसवाहनाय नमः
ऊँ त्रिगुणात्मने नमः
ऊँ सत्यात्मने नमः
ऊँ गुणवल्लभाय नमः
ऊँ भूकल्पाय नमः
ऊँ भूलेंकाय नमः
ऊँ भुवलेकाय नमः
ऊँ चतुर्भुजय नमः
ऊँ विश्वरुपाय नमः
ऊँ विश्वव्यापक नमः
ऊँ अनन्ताय नमः
ऊँ अन्ताय नमः
ऊँ आह्माने नमः
ऊँ अतलाय नमः
ऊँ आघ्रात्मने नमः
ऊँ अनन्तमुखाय नमः
ऊँ अनन्तभूजाय नमः
ऊँ अनन्तयक्षुय नमः
ऊँ अनन्तकल्पाय नमः
ऊँ अनन्तशक्तिभूते नमः
ऊँ अतिसूक्ष्माय नमः
ऊँ त्रिनेत्राय नमः
ऊँ कंबीघराय नमः
ऊँ ज्ञानमुद्राय नमः
ऊँ सूत्रात्मने नमः
ऊँ सूत्रधराय नमः
ऊँ महलोकाय नमः
ऊँ जनलोकाय नमः
ऊँ तषोलोकाय नमः
ऊँ सत्यकोकाय नमः
ऊँ सुतलाय नमः
ऊँ सलातलाय नमः
ऊँ महातलाय नमः
ऊँ रसातलाय नमः
ऊँ पातालाय नमः
ऊँ मनुषपिणे नमः
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ऊँ पूर्णप्रभाय नमः
ऊँ ह्रदयवासिने नमः
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ऊँ देवधराय नमः
ऊँ स्थिर कराय नमः
ऊँ वासपात्रे नमः
ऊँ पूर्णानंदाय नमः
ऊँ सानन्दाय नमः
ऊँ सर्वेश्वरांय नमः
ऊँ परमेश्वराय नमः
ऊँ तेजात्मने नमः
ऊँ परमात्मने नमः
ऊँ कृतिपतये नमः
ऊँ बृहद् स्मणय नमः
ऊँ ब्रहमांडाय नमः
ऊँ भुवनपतये नमः
ऊँ त्रिभुवनाथ नमः
ऊँ सतातनाथ नमः
ऊँ सर्वादये नमः
ऊँ कर्षापाय नमः
ऊँ हर्षाय नमः
ऊँ सुखकत्रे नमः
ऊँ दुखहर्त्रे नमः
ऊँ निर्विकल्पाय नमः
ऊँ निर्विधाय नमः
ऊँ निस्माय नमः
ऊँ निराधाराय नमः
ऊँ निकाकाराय नमः
ऊँ महदुर्लभाय नमः
ऊँ निमोहाय नमः
ऊँ शांतिमुर्तय नमः
ऊँ शांतिदात्रे नमः
ऊँ मोक्षदात्रे नमः
ऊँ स्थवीराय नमः
ऊँ सूक्ष्माय नमः
ऊँ निर्मोहय नमः
ऊँ धराधराय नमः
ऊँ स्थूतिस्माय नमः
ऊँ विश्वरक्षकाय नमः
ऊँ दुर्लभाय नमः
ऊँ स्वर्गलोकाय नमः
ऊँ पंचवकत्राय नमः
ऊँ विश्वलल्लभाय नमः
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प्राचीन ग्रंथो उपनिषद एवं पुराण आदि का अवलोकन करें तो पायेगें कि आदि काल से ही विश्वकर्मा शिल्पी अपने विशिष्ट ज्ञान एवं विज्ञान के कारण ही न मात्र मानवों अपितु देवगणों द्वारा भी पूजित और वंदित है । भगवान विश्वकर्मा के आविष्कार एवं निर्माण कोर्यों के सन्दर्भ में इन्द्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी, पाण्डवपुरी, सुदामापुरी, शिवमण्डलपुरी आदि का निर्माण इनके द्वारा किया गया है । पुष्पक विमान का निर्माण तथा सभी देवों के भवन और उनके दैनिक उपयोगी होनेवाले वस्तुएं भी इनके द्वारा ही बनाया गया है । कर्ण का कुण्डल, विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र, शंकर भगवान का त्रिशुल और यमराज का कालदण्ड इत्यादि वस्तुओं का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ही किया है । ये "शिल्पशास्त्र" के आविष्कर्ता हैं। पुराणानुसार यह प्रभास वसु के पुत्र हैं। "महाभारत" में इन्हें लावण्यमयी के गर्भ से जन्मा बताया है। विश्वकर्मा रचना के पति हैं। देवताओं के विमान भी विश्वकर्मा बनाते हैं। इन्हें अमर भी कहते हैं। "रामायण" के अनुसार विश्वकर्मा ने राक्षसों के लिए लंका की सृष्टि की। सूर्य की पत्नी संज्ञा इन्हीं की पुत्री थी। सूर्य के ताप को संज्ञा सहन नहीं कर सकी, तब विश्वकर्मा ने सूर्य तेज का आठवां अंश काट उससे चक्र, वज्र आदि शस्त्र बनाकर देवताओं को प्रदान किए ! विष्णुपुराण के पहले अंश में विश्वकर्मा को देवताओं का वर्धकी या देव-बढ़ई कहा गया है तथा शिल्पावतार के रूप में सम्मान योग्य बताया गया है। यही मान्यता अनेक पुराणों में आई है, जबकि शिल्प के ग्रंथों में वह सृष्टिकर्ता भी कहे गए हैं। स्कंदपुराण में उन्हें देवायतनों का सृष्टा कहा गया है। कहा जाता है कि वह शिल्प के इतने ज्ञाता थे कि जल पर चल सकने योग्य खड़ाऊ तैयार करने में समर्थ थे।
विश्व के सबसे पहले तकनीकी ग्रंथ विश्वकर्मीय ग्रंथ ही माने गए हैं। विश्वकर्मीयम ग्रंथ इनमें बहुत प्राचीन माना गया है, जिसमें न केवल वास्तुविद्या, बल्कि रथादि वाहन व रत्नों पर विमर्श है। विश्वकर्माप्रकाश, जिसे वास्तुतंत्र भी कहा गया है, विश्वकर्मा के मतों का जीवंत ग्रंथ है। इसमें मानव और देववास्तु विद्या को गणित के कई सूत्रों के साथ बताया गया है, ये सब प्रामाणिक और प्रासंगिक हैं। मेवाड़ में लिखे गए अपराजितपृच्छा में अपराजित के प्रश्नों पर विश्वकर्मा द्वारा दिए उत्तर लगभग साढ़े सात हज़ार श्लोकों में दिए गए हैं। संयोग से यह ग्रंथ 239 सूत्रों तक ही मिल पाया है।
शिल्प संकायो, कारखानो, उधोगों मॆ भगवान विश्वकर्मा की महत्ता को मानते हुए प्रत्येक वर्ग 17 सितम्बर को श्वम दिवस के रुप मे मनाता है। यह उत्पादन-वृदि ओर राष्टीय समृध्दि के लिए एक संकल्प दिवस है। प्रतिवर्ष 17 सितम्बर विशवकर्मा-पुजा के रुप मे सरकारी व गैर सरकारी ईजीनियरिग संस्थानो मे बडे ही हषौलास से सम्पन्न होता हे। लोग भ्रम वश इस पर्व को विश्वकर्मा जयंति मानते हैं जबकि विश्वकर्मा जयंती हिंदी तिथि के अनुसार माघ सुदी त्रयोदशी को होती है ।
Celebration shree Vishwakarma Seva Samiti - Abd.
No. Date Place
1st 31st jan - 2007 Karnavati Park - Nikol
(Prabhudas Panchal)
2nd 19th Feb - 2008 khodiyar Mandir - Nikol
3rd 9th Feb - 2009 Tebly Hanuman - Kathvada
4th 7th Feb - 2010 Dholeshvar Mahadev
Gandhinagar
5th 6th March - 2011 Dholeshvar Mahadev
Gandhinagar
6th 5th Feb - 2012 Sahjanand gurukul
Koteswar gam,Gandhinagar
1st 31st jan - 2007 Karnavati Park - Nikol
(Prabhudas Panchal)
2nd 19th Feb - 2008 khodiyar Mandir - Nikol
3rd 9th Feb - 2009 Tebly Hanuman - Kathvada
4th 7th Feb - 2010 Dholeshvar Mahadev
Gandhinagar
5th 6th March - 2011 Dholeshvar Mahadev
Gandhinagar
6th 5th Feb - 2012 Sahjanand gurukul
Koteswar gam,Gandhinagar